मानन्च तन्त्रोक्तम् आयुर्वेद स: उच्यते।।
अर्थात् जिस ग्रन्थ में हित जीवन अहित जीवन सुखी जीवन दुखी जीवन के लक्छण चिकित्सा एवं परिभाषा समस्त मानो के साथ लिखा गया हो, उस ज्ञान को आयुर्वेद Ayurveda कहा जाता है।
Purpose of Ayurveda आयुर्वेद का उद्देश्य
स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम आतुरस्य विकार प्रशमनम् चः।
अर्थात् स्वस्थ समाज के स्वास्थ्य की रक्षा एवं रोगी हो चुके समाज के रोगो का समूल नाश करना ही आयुर्वेद Ayurveda का उद्देश्य है।
Evaporation of Ayurveda आयुर्वेद का अवतरण
हेतु लिङर् औशध ज्ञातम् स्वास्थ्य आतुर परायणम्।
त्रिसुत्रम् शाश्वतम् पुण्यम् बुबुधे यन् पितामह:।।
उपरोक्त श्लोक देवराज इन्द्र Devraj Indra ने महर्षि भारद्वाज को सुत्रात्मक आयुर्वेद के रूप में दिया था। देवराज इंद्र ने आयुर्वेद का ज्ञान ब्रम्हा जी से लिया था। देवराज इंद्र कहते हैं की स्वस्थ जीवन एवं रोगी के कारण, लक्षण एवं चिकित्सा का संपुर्ण ज्ञान इन्ही तीनो सुत्रो मे है। किसी भी के कारणो क ज्ञान, उसके लक्षणो का ज्ञान और उसके बाद उसकी चिकित्सा का ज्ञान होने पर कोई भी ऐसा रोग नही है जिसकी जिसकी चिकित्सा न हो सके। इसी प्रकार स्वस्थ Healthy रहने का कारण, स्वस्थ रहने के लक्षण व स्वस्थ रहने के लिये औषध का ज्ञान Knowledge of Medicine होने पर कोई रोगी नही हो सकता।
Mainly Ayurveda is divided into two parts मुख्य रूप से आयुर्वेद दो भागो मे विभक्त है।
1. औषध चिकित्सा (Medicine)
2. शल्य चिकित्सा (Surgery)
इस ब्लॉग Blog का यानि हमारा विषय औषध चिकित्सा Medicine Treatment ही है। आयुर्वेद के ग्रंथो में चरक संहिता ने लिखा है:-
नानौषधि भूतम् इन्द जगति यत् किन्चित प्राप्लुभ्य्ते।
अर्थात् इस संसार World मे ऐसा कोई पदार्थ स्थावर या जंगम नहीं है जो औषध ना हो, अर्थात् जो कुछ हमें उपलब्ध है सभी कुछ औषधी है।
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