एक Shloka श्लोक जो बताता है स्वास्थ्य की परिभाषा
समदोष समाग्निश्च समधातु मल: क्रिय ।
प्रस्न्नात्येन्द्रिय मन: स्वस्थ इत्यभिधीयते ।।
अर्थात् जिसके तीनो दोष (वात, पित्त, कफ) आठो अग्नि (सात धातुओं की अग्नि एक जठराग्नि) सातों धातुएं (रस, रक्त, मांस, भेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) सातो मल और 12 वेग (मल, मूत्र, वीर्य, अपानवायु, स्वेद, खांसी, छिंक, डकार, हिचकी, जम्भाई, आंसू, श्वास)। चयापचय क्रियाएं सम्यक रूप से चलती हों जिसकी 10 इंद्रियां (पांच क्रमेन्द्रियां और पांच ज्ञानेंद्रियां) आत्मा, मन पूर्णत: प्रसन्न हो, उसी मानव को पूर्णत: स्वस्थ कहा गया है। स्वस्थ रहने के लिए जैसा कि पहले लिखा गया है कि स्वस्थवृत के नियमों का पालन आवश्यक है।
तो अगर आप चाहते है स्वस्थ रहना और अच्छा Treatment इलाज वो भी पूरी तरह से तो उक्त श्लोक के अर्थ में स्वस्थ मनुष्य की जो जानकारी दी गई है उसके बारे में तो सोचना ही पड़ेगा। लेकिन ये होगा कैसे? आप यही सोच रहे होंगे। तो चलिए आगे आपको इस बारे में और जानकारी दी जा रही है। इसी विषय पर स्वास्थ्य के हेतु बताते हुए ऋषियों ने लिखा है की:-
नरोहिताहार विहार सेवी समिक्ष्यकारी: विष्येष्वस्क्त: ।
दाता सम: सत्यपर: क्षमावान आत्तोप्सेवी भवत्यरोग: ।।
अर्थात् जो मनुष्य शरीर के लिए हितकारी आहार और विहार का सेवन करता है। खान-पान, रहन-सहन, आचार विचार में अच्छे बुरे की पहचान रखता है विषयों में जिसकी आसक्ति नहीं है जो दानवीर है, हरेक को समान समझता है। सत्य बोलने वाला और सत्य आहार-विहार करने वाला, दूसरों को भी जो सदा क्षमा करता है और जो बुजुर्गों और विद्वानों का मन से सम्मान करता है उसे रोग नहीं होते।
इसके अलावा कुछ नियम है जो स्वस्थ जीवन को रचना सिखाते है:-
आयुर्वेद शास्त्र में लिखें हुए स्वस्थ रहने के कुछ नियम
- स्वास्थ्य की कामना करने वाले को प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठ जाना चाहिए।
- खाली पेट दो-तीन गिलास जल पीकर थोड़ा टहले, उसके बाद मल त्याग हेतु जाएं।
- मल त्याग के उपरांत भली प्रकार दातुन या आयुर्वेदिक मंजन से अपने दांत साफ करें।
- उसके बाद प्रातः भ्रमण के लिए किसी खुला स्थान या पार्क में जाएं। कम से कम ढाई किलो मीटर तेज चाल से चलें फिर व्यायाम करें जो कि अर्धशक्ति तक आवश्यक है। शरीर में पसीना आ जाने को अर्धशक्ति का आ जाना कहते हैं।
- यदि योग्य योग शिक्षक मिले तो उसकी देखरेख में योग आसन भी करें।
- शुद्ध तेल से शरीर के सभी अंगो की मालिश प्रतिदिन करना श्रेयस्कर है।
- इसके उपरांत पुरुष सेव इत्यादि करें और भली प्रकार स्नान शीतल जल से करें।
- स्नान के उपरांत यदि माता-पिता साथ में रह रहे हो तो उनके चरण स्पर्श करें।
- घर में या मंदिर में जाकर प्रतिदिन कुछ समय ईष्ट देव के पूजन में लगाना चाहिए।
- भोजन करने से पूर्व इस संसार में रचियता भगवान ब्रम्हा जी अपने कुल के पितृ, इष्टदेव जिस स्थान पर रहते हो ग्राम देवता और अतिथिदेव को भोजन अर्पित करके स्वयं भोजन करना चाहिए।
- भोजन बनाते समय सर्वप्रथम अग्नि और गौ को समर्पित करें।
- दिनचर्या, ॠतूचर्या का पालन नियमानुसार करें।
- व्यापार, नौकरी या अन्य सेवा जो भी कर्तव्य है उन्हें पूर्णत: इमानदारी से करना आवश्यक है।
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